आतंकवाद और अलगाववाद दोनो का खतरा बढ़ता जा रहा है। और यह खतरा केवल भारत में ही नहीं विश्व के कई भागों में एक बड़ी चुनौती का रूप ले चुका है। इस्लामिक स्टेट या आई एस आई एस इसी आतंकवाद का एक निर्मम और अत्यंत घिनौना स्वरुप है। और भारत में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों का खतरा बड़ा है – इसलिए नही कि सीरिया या ईराक से टोयोटा पिक अप गाड़ियों के दहिश के आतंकी सीमा लांघ कर आएंगे – बल्कि इसलिए क्योकिं इंटरनैट की मदद से इन आतंकियों को सीमा पर करने की आवश्यकता ही नहीं है। यह तो केवल यहीं कुछ नौजवानो को धर्म के नाम पर गुमराह कर सैंकड़ो बेगुनाहों को निशाना बना सकते हैं। लोन वुल्फ यानि हथियारो से लैस इकलौता आतंकी इस समय सुरक्षा बलो के लिए बड़ी चुनौती है।
1994 से, जब मैने पत्रकारिता शुरू की आतंकवाद का निरंतर बदलता चेहरा देखा – और आने वाले समय में यह चेहरा और क्रूर, निर्मम और निर्दोशों की जान लेता दिखाई दे रहा है। हालांकि आतंकी निरंतर बेगुनाहो को निशाना बनाते आएं है अपने राजनीतिक मकसद को साधने के लिए फिर चाहे हम बात करें खालिस्तान तलाशते सिख गुटो कीं या फिर कश्मीर को स्वर्ग से नर्क की ओर ले जाते नौजवानो की । भारत में पनप रहे आतंकवाद में पाकिस्तान की सेना और आई एस आई की अहम भूमिका रही है।
1999 में पाकिस्तान ने कारगिल में भारत की सीमा में लगभग 150 किलोमीटर इलाके में 5-20 किलोमीटर अंदर तक घुसपैठ की। उस समय में इंडियन एक्सप्रैस समाचार पत्र में था। मुझे कारगिल भेजा गया। मई के मध्य में तो सेना को भी पाकिस्तानी घुसपैठ का अंदाज़ नहीं था किंतु जून आते आते सेना और देश को अहसास हुआ कि पाकिस्तान ने किस तरह एक बार फिर भारत की पीठ में छुरा भोंका। कारगिल में द्रास और मश्कोह घाटी से लेकर बटालिक और सियाचिन तक में करीब ढाई महिने रहा। भारत की सेना का अदम्य साहस देखा और पाकिस्तान का दोमुहांपन भी। सेना के साथ मैं भी उन्ही के बंकरो में रहा, उन्ही का लंगर खाया और उन्ही की वीरता की कहानियां देखी और लिखीं। 1999 में ही मैने कारगिल युद्ध पर एक पुस्तक भी लिखी – डेटलाईन कारगिल। जुलाई में भारत ने पाकिस्तान को पीठ दिखाने पर मजबूर किया – परास्त पाकिस्तान ने कारगिल की उंचाईया छोड़ दी।
अगस्त के महिने में एक दिन वायुसेना मुख्यालय से फोन आया। पाकिस्तानी नौसेना के एक विमान एटलांटिक ने गुजरात में हमारे इलाके की टोह लेने का प्रयास किया तो उसे मार गिराया गया। उसी शाम वायुसेना के एक विशेष विमान से हम गुजरात के नलिया एयरबेस पहुंचे। वीर स्क्वाड्रन लीडक बुंदेला से भेंट हुई। पाकिस्तानी टोही विमान हमारी वायुसीमा में घुसपैठ कर रहा था – उसे लैड करने का आदेश दिया गया तो उसे भागने की कोशिश की इसिलिए उसे गिरा दिया गया। बदले की आग पाकिस्तान से सीने मे धधक रही थी और चार महिने बाद दिसंबर 1999 में उसने काठमांडू से दिल्ली आ रहा आई सी 814 को हाईजैक कर दिया। मैं उस समय दिल्ली में ही था और अगले एक सप्ताह तक निरंतर 7 रेस कोर्स रोड और नागरिक उड्डन मंत्रालय से उस खबर को रिपोर्ट किया। कितु यह प्रश्न मन में रहेगा कि क्यो भारत ने अमृतसर में विमान के पहिए में गोली मार कर उसे रोका नहीं और क्यों 31 दिसंबर तक यात्रियों को वापस लाने के लिए घुटने टेके सरकार नें।
युद्ध में पाकिस्तान भारत को परास्त नही कर सकता यह बात साफ हो गई – न 1947-48 में, न 1965 में, न 1971 में और न ही कारगिल में । फिर पाकिस्तान में बैठे आंतक के आकाओं ने एक और घिनौना खेल खेला। प्रजातंत्र के मंदिर संसद पर हमला किया। साज़िश के तार पाकिस्तान और कश्मीर होते हुए दिल्ली पहुंचे। लश्कर ए तयेबा और पाकिस्तान में बैठे बाकि आतंकी संगठनो के बेनकाब होते ही पाकिस्तान नें इंडियन मुजहीदीन को जन्म दिया। फिर चाहे दिल्ली के बाज़ारो में हमला हो या फिर मुंबई, बैंगलोर, जयपुर, अहमदाबाद, उत्तर प्रदेश के वाराणसी ले लेकर जम्मू कश्मीर तक – लगभग हर बड़े आतंकी हमले को मैने रिपोर्ट किया। सैंकड़ो बेगुनाहो को आतंक का शिकार होते देखा, पाकिस्तान का और पाकिस्तान के इशारो पर नाचने वाले हमारे कुछ नौजवानों को देखा। आतंक को बेहद करीब से मैने दिल्ली के बाटला हाउस इंकाउटर में देखा। 1995 से मैं क्राईम रिपोर्टर था को इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा और उनकी पूरी टीम को जानता ही था। सबसे पहला फोन उन्ही के साथी का आया। खासा तनावपूर्ण वातावरण था जब इंकाउंटर हुआ जामिया नगर इलाके में। रोष था लोगो में किंतु दुर्भाग्यपूर्ण यह बात की कि सच्चाई सामनें आने के बावजूद एक तबका सुरक्षा बलों को निशाना बनाता रहा। ताकि उनका मनोबल टूटे। बाटला हाउस से फरार एक कथित इंडियन मुजाहीदिन का आतंकी तो हमारे दफ्तर आया और स्टूडियो से गिरफ्तार हुआ।
आतंक का सबसे घिनौना चेहरा मैने मुंबई 26/11 को देखा। उस शाम मैं स्टूडियो में था जब पहली खबर कैफे लियोपोल्ड में गोली चलने की आई, फिर विले पार्ले में टैक्सी में धमाका उसके बाद औबराय होटल में गोली चली, रेलवे स्टेशन की तस्वीरे देख कर दिल दहल गया और फिर ताज में। रात चार बजे तक में लगातार स्टूडियो में था और फिर सुबह 6 बजे की फ्लाईट लेकर 8 बजे मुंबई में। अगले तीन दिनो तक पूरे विश्व ने देखा पाकिस्तानी आतंकियों ने किस तरह मौत का तांडव रचा। परते खुली तो पाकिस्तान बेनकाब हुआ। मैं शिकागो भी गया जहां डेविड कोलमैन हैडली ने पाकिस्तान को पूरी तरह से बनकाब किया इस साज़िश में। दुर्भाग्यवश फिर भी पाकिस्तान ने अपना मार्ग नही बदला और अब तक भारत विफल रहा है आंतक के आकाओ के खिलाफ कार्यवाही हो। किंतु प्रयास निरंतर चल रहा है।
2003 में मुझे इराक में युद्ध कवर करने का मौका मिला। सद्दाम हुसैन का फरार होना, जॉर्डन से बगदाद का सफर गोली बारी के बीच, सद्दाम की मूर्ति गिरना, अबु गरेब जेल का खाली होना सब देखा। लेकिन उससे भी रोमांचक था कर्नल गद्दाफी की गद्दी रहते हुए बिना वीज़ा के रात के अंधेरे में रेगिस्तान का एक हिस्सा पार करते हुए इजिप्ट से लीबिया में प्रवेश करना। खतरा बड़ा था क्योकि न वीज़ा था और न ही कोई दोस्त या जानकारी। किंतु सहयोगी शिव अरुर के साथ मैं लीबिया गया। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का नाम एक तरह से दुनिया के इस भाग में वीज़ा का काम करता है और गद्दाफी से परेशान पूर्वी लिबिया का जनता नें मदद की। अगले 15 दिनों तक हमने विद्रोही सैन्य गुटों के साथ सीमा से 1200 किलोमीटर अंदर तक रास लनूफ और बेन गाज़ी तक रिपोर्टिंग की। मकसद यही कि ज़मीनी स्थिति से देश वासियों को अवगत कराएं।
एक बड़ा फायदा 2002 में रिस्क असेसमैंट कोर्स करने की वजह से हुआ। यह कोर्स ब्रिटेन की सेना के भूतपूर्व कमांडो लंदन से करीब 200 किलोमीटर दूर न्यू हैमशर में कराते हैं – कैसे एक पत्रकार को युद्ध या आतंक प्रभावित इलाके में जीवित और सुरक्षित रहते काम करना चाहिए – यह सिखाया जाता है। और इसका लाभ 2005 में हुए लंदन पर दो आतंकी हमलो को कवर करने में भी हुआ।
लेकिन अब यह खतरा और निकट आने लगा है – खतरा इस्लामिक स्टेट से प्रभावित लोन वुल्फ से लेकर पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओं दोनो से है. खतरा केवल भारत में ही नहीं अफगानिस्तान में भारतीय समुदाय और काम पर भी है। खतरा बड़ा – निरंतर सचेत रहना आवश्यक है।